Rītikāvya kī bhūmikāSāhitya-Ratna Bhaṇḍāra, 1964 - 200 pagine |
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अतएव अतिरिक्त अत्यन्त अथवा अधिक अनुभव अनुभूति अन्तर्गत अपनी अपने अभिनवगुप्त अर्थ अर्थात् अलंकार अलंकारों आत्मा आदि आधार आनन्द इन इस प्रकार इसका इसके इसलिए इसी उदाहरण उनका उनके उन्होंने उसका उसकी उसके एक एवं और औरंगज़ेब कर करते हुए करने कला कवि का कारण काव्य काव्य के किया है किसी की कुछ के लिए केवल केशव को कोई क्योंकि गई गया है गुण जाता है जीवन जो तक तथा तो था थी थे दिया दुष्यन्त दो दोनों द्वारा ध्वनि नहीं है नायिका ने पर परन्तु प्रयोग प्रायः फिर भरत भाव भी भेद महत्त्व माना है मुग़ल में भी यह या ये रस रीति रूप में वस्तु वह वास्तव में विवेचन विशेष वे शकुन्तला शक्ति शब्द शास्त्र शृंगार श्लेष संस्कृत सकता है सभी समय सम्बन्ध सर्वथा साथ साहित्य सिद्धान्त से स्थायी स्थिति स्पष्ट हिन्दी ही हुआ है और है कि हैं हो होकर होता है होती होते